देश की ख़ातिर सीने पर 21 गोलियाँ खाने वाले शहीद डीएसपी ‘तंज़ील अहमद’ की दर्दनाक मौत पर ना पीएम मोदी ट्विट करते हैं ना ही कोई मंत्री उनके परिवार के ग़म में शामिल होता है ऐसा क्यों?
देश में जिस वक़्त कि ‘भारत माता की जय’ का मुद्दा छाया हुआ है। हर दिन राष्ट्रवादी कहे जाने वाले देश भक्त एक समुदाय को गालियां, धमकी देते नज़र आते हैं, कोई कहता है कि ‘अनगिनत सिर काट देते’ तो कोई देश से निकलने पर तुला हुआ है ऐसे में न जाने कितने सवाल हैं जो कि शहीद डीएसपी ‘तंज़ील अहमद’ की शहादत के बाद खड़े हो जाते हैं। इन सवालों के जवाब शायद कोई तथाकथित राष्ट्रवादी देना चाहेगा क्यूंकि तथाकथित राष्ट्रवादी संगठन को देश प्यार है और नहीं देश भक्ति क्या होती है जानते हैं। इन फ़ासिस्ट ताक़तों का काम देश में नफरत को बढ़ावा देना है।
आज सवाल तंजील अहमद औऱ आपकी, हमारी हम सब की देशभक्ति पर है। हम कैसे देशभक्त बनें ? हमारी देशभक्ति में कौन-कौन से गुण व अवगुण शामिल हों। क्या करें, क्या न करें, सब करें या कुछ भी करें। देशभक्त जो कहलाएगा उसे इनाम मिलेगा। इनाम में क्या मिलेगा ? इनाम में सोशल मीडिया पर गालियां नहीं मिलेंगी बल्कि बड़े-बड़े लोगों के ट्विट और Re-ट्विट मिलेंगे।
बीएसएफ कमाडेंड औऱ एऩआईए के डीएसपी तक के सफर में तंजील अहमद ने देशभक्ति के वो गुण नहीं सिख पाए होंगे जिसे उन्हें शहीद होने के बाद देशभक्त शहीद कहकर सैल्यूट करती हुई प्रधानमंत्री की ट्विट भी नसीब हो जाती है।
वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद मोदी बड़े सोशल फ्रेंडली हैं।
अफगान के राष्ट्रपति को 56 दिन पहले बधाई दे देते हैं, सिचायिन में शहीदों की शहादत पर मिलने से लेकर सभी तरह से अपना दुख प्रकट करते हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे मौके जहाँ प्रधानमंत्री का पहुंच पाना मुश्किल होता पर पीएम मोदी ट्विटर या फेसबुक के जरिए पहुंच ही जाते है। फिर क्या हो जाता है कि एक मुस्लिम अफसर तंजील अहमद के शरीर में 21 गोलियां मार दी जाती हैं। पत्नी को चार गोलियां मारी जाती है। औऱ तो और तंजील अहमद को उसके बच्चों के सामने मारा जाता है।
इतना वीभत्स और निर्मम दृश्य घटित होता है सेना के एक जवान पर जो अभी देश की सुरक्षा एजेंसी एनआईए में तैनात था। उसकी निर्दयी दर्दनाक मौत पर पीएम मोदी ना ट्विट करते हैं ना ही उनका कोई मंत्री यहाँ तक की उनके परिवार के गम में भी कोई शामिल नहीं होता है।
ऐसा क्यों ?
ऐसा इसलिए की मरने वाला जाबांज अफसर मुसलमान था या उनका परिवार आपकी खासी विचारधारा के विचारों से मेल नहीं खाता है।अब नहीं रहा यह सेना का जवान। जिसके बच्चों ने अपने पिता को 21 बार मरते देखा। अब अपनी माँ को जिंदगी-मौत के रास्ते पर अस्पताल में झूलता देख रहे हैं। राजनेताओं के एक खासे मंच पर देशभक्ति का टेस्ट होता है।
तंजील की शहादत, मेहनत और देश के लिए कुर्बानी शायद हनुमनथप्पा, हेमराज की तरह राजनीतिक रंग न ले। पर तंजील अहमद शहीद होकर भी तुम पीएम मोदी के ट्विट पर जगह नहीं पा सके।
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